How Does Vaping Works: वेपिंग एक नई प्रवृत्ति है जो हाल के वर्षों में तेजी से लोकप्रिय हो गई है. इसमें इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का उपयोग करके लिक्विड (e-liquid) को वाष्प (Vapour) में बदला जाता है, जिसे सांस के माध्यम से शरीर के अंदर लिया जाता है. यह पारंपरिक सिगरेट का एक विकल्प माना जाता है और इसे कम हानिकारक होने का दावा किया जाता है.
Vaping की तकनीक
वेपिंग डिवाइस, जिसे ई-सिगरेट या वेप पेन कहते हैं, बैटरी से संचालित होते हैं. इसमें एक हीटिंग एलिमेंट (कॉइल) होता है जो लिक्विड को गर्म करता है. यह लिक्विड आमतौर पर निकोटिन, फ्लेवरिंग एजेंट्स, प्रोपाइलीन ग्लाइकोल और वेजिटेबल ग्लिसरीन से बना होता है. गर्म होने पर यह लिक्विड वाष्प में बदल जाता है, जिसे उपयोगकर्ता सांस के जरिए अंदर लेते हैं.
वेपिंग डिवाइस विभिन्न प्रकार के आते हैं, जैसे मॉड्स, पोड सिस्टम और डिस्पोजेबल वेप पेन. इनमें से कुछ स्मार्ट तकनीकों से लैस होते हैं, जैसे ब्लूटूथ कनेक्टिविटी और पफ ट्रैकिंग.
सेहत पर प्रभाव
वेपिंग को पारंपरिक सिगरेट से कम हानिकारक कहा जाता है क्योंकि इसमें धुएं के बजाय वाष्प निकलती है, लेकिन यह पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है. वेपिंग में इस्तेमाल होने वाला निकोटिन एक एडिक्टिव पदार्थ है, जो हृदय और तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर सकता है.
इसके अलावा, फ्लेवरिंग एजेंट्स और अन्य रसायन फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. “पॉपकॉर्न लंग” नामक एक बीमारी, जो फेफड़ों के छोटे एयरवे को प्रभावित करती है, वेपिंग से जुड़ी हुई है.
युवाओं में बढ़ती लोकप्रियता
आकर्षक फ्लेवर और आसानी से उपलब्धता के कारण वेपिंग किशोरों में तेजी से लोकप्रिय हो रही है. लेकिन यह स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है और इसे रोकने के लिए सख्त नियम लागू किए जा रहे हैं.
वेपिंग को पारंपरिक सिगरेट का सुरक्षित विकल्प मानना एक भ्रम हो सकता है. यह लत का कारण बन सकता है और स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है. इसके उपयोग से बचना ही बेहतर है, खासकर युवाओं के लिए.
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